Friday, 4 March 2016

An Open Letter to JNU President Kanhaiya Kumar from a Indian Tex Payer

आपका भाषण सुना जो आपने जेल से वापस आ कर दिया, सुना कि आपको ग़रीबी, भुखमरी, जातिवाद, साम्राज्यवाद और पूँजीवाद से आज़ादी चाहिये। मेरे विचार मे, इन सबसे आजादी पाने के लिए मन लगाकर पढाई करें, खूब मेहनत करें, कैरियर बनायें और आगे बढ़ें तो अपने आप मिल जायेगी आजादी और अापके साथी जो नारे लगा रहे हैं उनको भी ये समझायें। आपका भाषण तो अच्छा था लेकिन मैं आपकी बातों में लाजिक ढूँढ़ने की कोशिश कर रहा था, इसके लिये मेरे दो चार सवाल है ज़वाब देने की मेहरबानी करें
       
1- आपका भाषण तो पूरा राजनैतिक था, तो ये पढ़ाई का ढोंग क्यों?? बाहर आईये और राजनीति में करियर चमकाईये और अपनी जगह किसी उपयुक्त छात्र को दीजिये जो पढ़ाई के नाम पर राजनीति न करे। पढ़ाई के नाम पर ये मुफ़्तख़ोरी बंद करिये, आपके राजनैतिक करियर पर टैक्स पेयर जनता का पैसा बर्बाद क्यों हो??

2- ग़रीबी, भुखमरी, जातिवाद, साम्राज्यवाद और पूँजीवाद ... लेकिन ये नही बताया ये समस्या कब से है ? और इसके असली जिम्मेदार कौन है ?? ज़रा बतायेंगे ये सारी समस्यायें कब से हैं ?? या ये सिर्फ पिछले 18 महीने मे खड़ी हुई हैं ?? जो पार्टी 60 सालों से राज कर रही थी उसकी जवाबदारी कितनी मानते है या उनके शासन में रामराज्य था ??आप प्रधानमंत्री की सूट पकड़ कर उनसे प्रश्न पूछना चाहते हैं तो सोनिया गांधी की साड़ी पकड़ कर उनसे प्रश्न क्यों नही पूछते??

3- आपने तो ये बताया नहीं कि ग़रीबी, भुखमरी, जातिवाद, साम्राज्यवाद और पूँजीवाद को कैसे हटायेंगे और इसका ब्लूप्रिंट क्या है या सिर्फ़ नारों से हट जायेगी ?? आज सारी दुनिया मे वामपंथ फ़ेल हो चुका है तो ये भारत में किस तरह से सफल होगा ??

4- आपकी पार्टी की सरकार पश्चिम बंगाल मे 35 साल तक थी, आप बतायेंगे कितनी ग़रीबी, भुखमरी या जातिवाद दूर हो गया?? आँकड़े तो इसका उल्टा ही बताते हैं तो हम क्यो विश्वास करें आपका??

5- अगर भारत के संविधान या लोकतांत्रिक मूल्यों में विश्वास करते हैं तो जनता के बीच जाकर, चुनाव लड़कर ईमानदारी से सिस्टम मे सुधार करते और ग़रीबी भुखमरी के खिलाफ लड़ते न कि जनता द्वारा चुनी हुई सरकार के खिलाफ ज़हर उगलते

6. आपको पुलिसवाला अपने जैसा ही इंसान लगा अच्छी बात है पर बतायेंगे जिन पुलिसवालों को दंतेवाड़ा में आपके साथियों (DSU) ने मारा वो अपने जैसे लगते थे या नही ?? जिनकी मौत पर JNU में जश्न मनाया जाता है वो भी ग़रीब परिवार के ही थे जिन्हें लाल सलाम वालों ने मारा है

7- आपको फ़ौजी भी अपने जैसे लगते हैं ना, तो आपके साथ कंधे से कंधा मिला कर जो नारे देते हैं 'भारत तेरे टुकड़े होंगे' कभी सोचा है उनके उपर क्या गुज़रती होगी ?? उनका मोराल कितना डाउन होता होगा ?? कभी सोचा है एक भारतीय की आत्मा तड़पती है जब JNU के ये नारे सुनते हैं "भारत की बर्बादी तक जंग रहेगी" आपको भी यही लगता तो आप कहीं विरोध दर्ज करते ना

8- आप कहते है कि इस देश के क़ानून पर आपको भरोसा है तो कैसे ? आपके साथी तो आपके सामने ही नारा देते हैं ?? "अफ़ज़ल हम शर्मिंदा हैं, तेरे क़ातिल ज़िंदा हैं ंंं', "कितने अफ़ज़ल मारोगे, घर घर से अफ़ज़ल निकलेगा",
पुलिस वालों से आपको सहानुभूति है ना, कितने पुलिसवाले संसद में हुए हमले में मरे थे ? ये तो मालूम है ना या दिल में अफ़ज़ल से अंधी सहानुभूति है ?? ये भारत की सर्वोच्च न्यायालय का ही तो फ़ैसला था फिर ये आपका ढोंग नहीं है तो और क्या है ??

9- रोहित वेमुला जिसका SFI से मोहभंग हो चुका था उसका येचुरी के बारे में लिखा ख़त/विचार क्यो नहीं बताया?? क्योंकि वो आपकी विचारधारा को सपोर्ट नहीं करता ?? मरने वाला इंसान कभी झूठ नहीं बोलता और dying declaration तो कोर्ट भी मानता है, जब रोहित ने आख़िरी ख़त में किसी को भी ज़िम्मेदार नहीं बताया पर आप किसी न किसी तरह से इसका भी राजनैतिक फ़ायदा उठाना चाहते है तभी तो ये मुद्दा बार बार उठाते हैं

आपकी असली समस्या है एबीवीपी, आरएसएस, बीजेपी और मोदी जिनसे आज़ादी चाहिये, आपको लोकतांत्रिक ढंग से चुनी सरकार नहीं चाहिये क्योंकि आपको पंसद नही, उसके जाने के बाद सब आज़ादी मिल जायेगी। भाषण की जगह बस एकबार अपना ही जजमेंट ही पढ़ कर सुना देते छात्रों के सामने, ख़ुद पर शर्म आ जायेगी और सारी ग़लतफ़हमी दूर हो जायेगी
एक आम भारतीय
तरुण दुबे

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