Friday, 29 January 2016

Real Truth about the life

खतरनाक सत्य


"अगर आप रास्ते पर चल रहे हैं और आपको वहां पड़ी हुई दो पत्थर की मुर्तियाँ मिलें

1) भगवान राम की

और

2) रावण की

और आपको एक मूर्ति उठाने का कहा जाए तो अवश्य आप राम की मूर्ति उठा कर घर लेके जाओगे।
क्योंकी श्रीराम सत्य , निष्ठा,
सकारात्मकता के प्रतिक हैं और रावण नकारात्मकता का प्रतिक है।



फिरसे आप रास्ते पर चल रहे हो और दो मुर्तियाँ मिले
राम और रावण की
पर अगर "राम की मूर्ति पत्थर" की और "रावण की सोने "की हो
और एक मूर्ति उठाने को कहा जाए तो आप राम की मूर्ति छोड़ कर  रावण की सोने की मूर्ति ही उठाओगे
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मतलब
हम सत्य और असत्य,
सकारात्मक और नकारात्मक
अपनी सुविधा और लाभ के अनुसार तय करते हैं।

       ☺☺☺☺


९९% प्रतिशत लोग भगवान को सिर्फ लाभ और डर की वजह से पूजते है।

                ☺

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.और इस बात से वह ९९% प्रतिशत लोग भी सहमत होंगे मगर शेअर नही करेंगे क्योंकी .....
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एक ही डर
               "लोग क्या कहेंगे".
   
     

लोग क्या सोचेंगे  ? ? ?


25 साल की उम्र तक हमें परवाह नहीँ होती कि  "लोग क्या सोचेंगे  ? ? "

50 साल की उम्र तक इसी डर में जीते हैं  कि  " लोग क्या सोचेंगे  ! ! "

50 साल के बाद पता चलता है कि      " हमारे बारे में कोई सोच ही नहीँ रहा था ! ! ! "

Life is beautiful, enjoy it everyday.


सबसे बड़ा रोग,
क्या कहेंगें लोग।




Question Paper English 2015 B.A. (prog) Ist Year Sol.du.ac.in

BA previous year question papers School of Open Learning SOL Delhi University


Sol.du.ac.in School of Open Learning previous Year Question Papers Delhi University

B.A. Programme I Year
English Language (C)
Basic English
Question Paper 2015

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BA Question paper Sol.du.ac.in B.A. Programme I 2015

BA Question paper Sol.du.ac.in B.A. Programme I 2015 

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महामना एक्सप्रेस (Mahamana Express) में चोरी हो गईं टोटियां-टॉयलेट किट

कुछ साल पहले दिल्ली जाना हुआ, सुबह सुबह श्रीधाम एक्सप्रेस पकड़ी, दिल्ली तक की ट्रेन और सुबह का वक़्त इसलिए ट्रेन ज्यादा भरी हुई नहीं थी, एक जगह सीट मिल गयी, आमने-सामने की सीट थी, 7-8 सवारी बैठी थी........ ट्रेन चली तो सामने खिड़की से सटकर बैठे एक सज्जन ने अपने बैग से मूंगफली निकाली, खा खा कर छिलके नीचे ही फर्श पर यहां वहां विसर्जित कर दिए..... और खा पी कर मुह साफ़ कर बैठ गए........
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कोई एक घंटे बाद आगरा निकलते बात चीत का दौर शुरू हो गया....... क्रिकेट, क्रिकेट से राजनीति, राजनीति से व्यवस्थाओं तक चर्चा खिसक कर विदेश जा पहुँची...... बातों का कारवां अमेरिका, चीन, जापान से होता हुआ साफ़ सफाई पर आ ठहरा...... भारत में कितनी गन्दगी है भाई...... विदेशों में कितनी साफ़ सफाई रहती है...... जापानियों का साफ़ सफाई में कोई तोड़ नहीं, अंग्रेजों का कोई सानी नहीं..........
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सामने खिड़की से बैठे सज्जन कुछ ज्यादा ही चौड़े हो गए, रोब झाड़ते हुए बोले अरे भई फॉरेन कंट्री का हिन्दुस्थान से क्या मुकाबला.... वहां के शहरों की तो बात ही मत कीजिये, एक बार मैं फ्रांस गया था..... पेरिस को देख कर दंग रह गया, चमचमाती सड़कें, साफ़ सुथरे फुटपाथ, मैनेर्स से चलते बतियाते लाइन में लगकर तरीके से खरीददारी करते और शांति बनाये रखते लोग, कहीं कोई धक्का मुक्की नहीं, पब्लिक प्लेस हो या बस, टैक्सी, ट्रेन.... सभी जगह पर साफ़ सफाई एक नम्बर........... अपना देश तो डस्टबिन बना हुआ है साहब......... यूरोप की तो बात ही अलग है, उसका हर एक शहर चमक मारता है चमक.......????
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उन्होंने मेरी और देखकर अपनी बातों पर मेरी सहमति का ठप्पा चाहां, मैं बहुत देर से चुपचाप सबकी बातें सुन रहा था, तपाक से बोला..... हाँ अंकल बिलकुल सही, वो क्या है कि वहां के लोग ट्रेन में मूंगफली खा कर छिलके फर्श पर नहीं फेंकते.............
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अंकल के कान में धमाका हो गया, जो मुंह अभी बात चीत करते समय हैलोजन ट्यूब की तरह खिल रहा था अब डिम लाइट में जलने को तरस रहे बल्ब की तरह बुझ गया, आसपास से खी खी खी के स्वर फूटे....... और अंकल बुरा सा मुह बनाते हुए चुप हो गए....... नई दिल्ली आने तक बातचीत तो होती रही पर साफ़ सफाई पसंद अंकल एक शब्द भी नही बोले, स्टेशन पर उतरने के बाद भी नज़रों से ओझल होने तक वे मुझे खिसियाये से देखते रहे........
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अंग्रेज अपने क्लबों, दफ्तरों और स्कूलों के बाहर indians and dogs are not allowed के बोर्ड टांगते थे, यानी हमें कुत्तों के बराबर मानते थे........ कुछ लोग इस पर शिकायत करते हैं, नाराज होते हैं लेकिन मैं नाराज नहीं होता, आलोचना नहीं करता और ना ही बुरा मानता....... क्योंकि आजादी की 68 सालों बाद भी जिस देश के लोगों को सड़क पर चलना नहीं आया, लोगों से सलीके से बात करना नहीं आया, साफ़ सफाई करना नहीं आया...... हगना, मूतना, थूकना नहीं आया वे 250 साल पहले कैसे रहे होंगे आप खुद सोच सकते हो...........
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सड़क पर चलते चलते किधर भी मुड़ जाते हैं कुछ पता नहीं, आते जाते वाहनों को देखना हराम है, जहाँ सुनसान दीवार मिली मूतने लग जाते हैं, पटरी किनारे हगने लग जाते हैं......... कोई कोना मिला पिच्च से थूक दिया............ मूंगफली खायी सड़क पर बिखेर दी, चिप्स खायी लिफाफा फेंक दिया, पानी पीया बोतल फेंक दी....... हमारी ट्रेन, बस से लेकर पब्लिक प्लेसेस तक सब गंदे पड़े हैं........... बस घर चमका रखे हैं......... साफ़ सफाई बरतना नहीं आता लेकिन सरकार प्रशासन को कोसना बखूबी आता है......... प्रशासन क्या करे झाडू तसला दे कर हर एक के पीछे एक सफाई कर्मचारी लगा दे.... जाओ पीछे पीछे और ये जंहा भी थूके, हगे, मूते या कुछ भी फेंके साफ़ करते चलना, साहब फलानी रियासत के नवाब हैं और गन्दगी इन्हें बिलकुल भी बर्दास्त नहीं......
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हम चाहते हैं कि हमारे शहर हेलसिंकी, पेरिस या क्वेटो बनें लेकिन हम फिनलेण्डीअन, फ्रेंच या जापानियों जैसे नहीं बनना चाहते वही 250 साल पहले के हिन्दुस्तानी ही बने रहना चाहते हैं........ हम चाहते हैं कि कोई दूसरा ही हमारे पोतड़े धोये, हम बस बैठकर या तो लेक्चर देंगे या गंदगी का रोना रोयेंगे, लेकिन खुद के हाथ नहीं सानना चाहेंगे........ क्योंकि गन्दगी तो हमें बिलकुल भी पसंद नहीं, सफाई पसंद नवाब जो ठहरे.........
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विदेशों में साफ़ सफाई से सम्बंधित अच्छी आदतें वहां के लोगों के जीवन जीने के तरीकों में इस कदर शामिल हैं कि ये आदते एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक आसानी से गमन कर जाती हैं लेकिन हम भारतीय ना तो खुद इन्हें अपनाते हैं और ना ही अपनी पीढ़ियों तक पहुंचाते है........ विदेश से लौटकर हम विदेशियों की साफ सफाई की आदतों का गुणगान तो करते घूमते हैं लेकिन उन्हें कभी अपनाते नहीं है...... इसके अलावा जब हम विदेश घूमकर आते हैं, अपनों को विदेशियों की साफ़ सफाई के बारे में खूब बताते हैं लेकिन ये कभी नहीं सोचते कि विदेशी भारत से जा कर भारतीयों की साफ़ सफाई के बारे में अपने लोगों को क्या बताते होंगे..... सोचिये..............
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देश बदलना है तो पहले खुद को बदलना होगा, जब तक खुद नहीं बदलेंगे तब तक ना तो बनारस क्वेटो बनने से रहा और ना ही भारत जापान...... फिर चाहे हम कितनी भी smart cities बना लें, लोग यहां-वहां कोनों में मूतते थूकते या सुबह सुबह ट्रेनों की पटरियों पर फारिग होते ही दिखेंगे....... और चाहे कितनी भी smart ट्रेनें चला लें ट्रेन से टोंटी, मग्गा और साबुन यूंही चोरी होती रहेंगी........ अगर हम नहीं बदले तो हम वही रहेंगे 250 साल पहले के भारतीय, जिनके लिए Indian and dogs are not allowed की तख्तियां अब दीवार पर तो नहीं लेकिन दिलो-दिमाग में जरूर लटकी रहेंगी..........
By Ashish Chhari 
ट्रेन का डिब्बा

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 ट्रेन के सेकंड एसी कोच का केबिन


Thursday, 21 January 2016

केजरीवाल को मारने की एक और साजिश नाकाम !!

केजरीवाल के सूखते हुए कच्छों पर अज्ञात लोगों ने फेंका पानी, केजरीवाल ने कहा, “मुझे नीमोनिया से मारने की साजिश हो रही है”


दिल्ली को दहला देने वाली यह घटना कल मुख्यमंत्री निवास की है जहाँ बरामदे में सूख रहे केजरीवाल के धारी वाले कच्छों पर अज्ञात युवकों ने लोहे की बाल्टियों से हमला कर, उन्हें पानी-2 कर दिया। विश्वसनीय सूत्रों से ये भी पता चला है की करीब 7 मिनट तक चली इस वारदात में पास ही सूख रहे बनियान और तौलिये को भी काफी छींटे पड़े हैं। इस पूरी वारदात के दौरान सभी घर वाले सो रहे थे और इस अनहोनी का पता उन्हें सुबह उस वक़्त चला जब केजरीवाल जी खुद अपने कच्छे पलटने गये।


स्थानीय थाना अधिकारी का कहना है की, “पुलिस ने अज्ञात लोगों के खिलाफ मामला दर्ज़ कर जांच शुरू कर दी है, और मेरी लोगों को सलाह है की जब तक अपराधी पकड़े नहीं जाते कृपया अपने कच्छे और बाकी कीमती कपड़े घर के अंदर ही सुखाये।”


इस मौके को भुनाने के लिए रखी गयी प्रेस कॉन्फ्रेंस में केजरी जी ने कहा, “दोस्तों ये जो मैं आप लोगों के सामने जीवित खड़ा हूँ, यह एक चमत्कार से कम नहीं है। वरना अगर मैं जल्दबाजी में वो गीले कच्छे पहन लेता तो मेरे दुश्मनों की मुझे निमोनिया करवा कर मारने की साजिश कामयाब हो जाती। भाइयों ये कोई आम छींटाकसी की घटना नहीं थी, ये एक बहुत सोची समझी साजिश थी। सबको पता है की मैं भी एक आम आदमी हूँ जिसके पास पूरे हफ्ते बदल-2 कर पहनने के लिए सात कच्छे नहीं होते। मैं भी आपकी तरह “कच्छे दो ही अच्छे” के सिद्धांत पर चलता हूँ और इसी बात का फायदा उठाते हुए हमला उसी रात हुआ जब मेरे दोनों कच्छे बाहर सूख रहे थे।”


इसी प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान जब एक पत्रकार ने पुछा, “केजरी जी अगर आपके दोनों कच्छे गीले है तो, अभी आपने किसका कच्छा पहन रखा है?” तब इस सवाल का जवाब देने से पहले ही आशुतोष जी ने माइक छिन लिया और चाय पकोड़े की स्टाल चालु होने की घोषणा कर प्रेस कॉन्फ्रेंस समाप्त कर दी।


बहारहाल इस मुददे पर प्रतिक्रिया देते हुए भाजपा प्रवक्ता ने कहा, “यह सब न्यूज़ में बने रहने के लिए ड्रामेबाज़ी है, वरना साहब हम भी कच्छे बनियान वाले हैं। हमारे घर में भी कच्छे सूखते हैं। उन पर तो किसी ने आज तक पानी नहीं डाला। एक बात मैं केजरी जी से पूछना चाहूँगा कि इतनी रात को आखिर कच्छे बाहर क्यों सूख रहे थे? क्या उनको इतना भी नहीं पता था की दिल्ली में इन दिनों कितनी ओस पड़ती है, कच्छे तो वैसे भी गीले होने ही थे। यह सब उनकी पोलिटिकल स्टंटबाजी है और कुछ नहीं।”

Rohit Vemula's suicide case: What happened at Hyderabad Central University

हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी के पीएचडी छात्र रोहित वेमुला ने रविवार रात फांसी लगाकर ख़ुदक़ुशी कर ली... जिस पर सेक्युलर बुद्धिजीवी , वामपंथी तमाम लश्कर ए मीडिया के दलाल छाती पिट - पिट कर मातम मना रहे हैं....

 पता हैं  हैदराबाद युनिवर्सिटी के उन 5 विद्यार्थीओं को होस्टल से निलंबित क्यों किया था ?

उन 5 दलित विद्यार्थीओं ने आतंकी याकूब मेमन के फांसी के विरोध में कैंपस के अंदर आंदोलन किया था ... बडे बडे पोस्टर पर लिखा था , घर घर से तयार होंगे और याकूब मेमन .
जिनमे आत्महत्या करने वाला छात्र रोहित वेमुला हैदराबाद युनिवर्सिटी में पढ़ता था .. जहाँ वामपंथी और मुस्लिम नेताओ ने दलित छात्रों को अपनी राजनितिक रोटी सेकने का एक माध्यम बना रखा हैं ..

रोहित वेमुला हैदराबाद युनिवर्सिटी में गौमांस भोज आयोजन करने के सबसे आगे था ..जबकि गौमांस भोज के पीछे दिमाग ओबैसी का था ..
फिर इसने मुंबई ब्लास्ट के खूंखार आतंकी याकूब मेमन को फांसी देने का खूब जोर शोर से विरोध किया .. और फांसी के बाद इसने अपने होस्टल के कमरे को "याकूब मेमोरियल हाल" बनाकर पेश किया .. और लोगो को याकूब को श्रधान्जली देने के लिए अपने कमरे में बुलाता था ...

इसके सगठन "अम्बेडकर स्टूडेंट्स एसोसिएशन" ने मुस्लिम संगठनो के साथ मिलकर याकूब की फांसी के विरोध में एक डाक्यूमेंट्री "मुजफ्फरनगर बाकी है " बनाई  इस डाक्यूमेंट्री में मुस्लिमो को हिन्दुओ पर हमले करने के लिए उकसाया गया था ..

अम्बेडकर स्टूडेंट्स एसोसिएशन के ऐसे कार्यो का जब एबीवीपी और पुलिस ने भी विरोध किया ..तब युनिवर्सिटी प्रसाशन ने छात्रों को तीन बार चेतावनी दी ..और उनके अभिभावकों को पत्र लिखकर चेतावनी दिया गया की आपका बच्चा पढाई में नही बल्कि नेतागिरी और राष्ट्रविरोधी कार्यो में लिप्त रहता है .. फिर भी जब सुधार नही हुआ तब पांच छात्रों को होस्टल से निकाल दिया गया ...

रोहित इतने प्रतिभाशाली थे कि, अपने ४०-५० साथियों के साथ अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् (ABVP) समर्थक छात्रो को भी पीटा था...

उसके इन्ही सब टैलेंट को देखते हुए उसे हॉस्टल से निलंबित किया गया, जो बहुत नार्मल सी कार्यवाही है.....

खैर आज रोहित जैसे  युवा अपने आदर्श कलाम, विवेकानंद, ओशो को न बनाकर याक़ूब मेमन, दाऊद आदि को बना रहे हैं...... ISIS, अलक़ायदा जैसे संगठन ऐसे ही युवाओं के जरिये आतंकवाद फैलाते हैं भारत में भी यही हो रहा है।

राजनीति में छात्र जीवन से ही सक्रिय होना अच्छा है पर राजनीति देश हित के लिए होनी चाहिए देश के विनाश के लिए नहीं..............

एक युवा छात्र के इस तरह मौत से सबको दुःख है .. लेकिन आखिर इसके पीछे जिम्मेदारी किसकी है ???

नोट -  रोहित वामुला का लिखे सुसाइड लेटर लिंक -http://goo.gl/nM4CbH

Question Paper Voluntary Organizations 2015 B.A. (prog) iii (application course) Sol.du.ac.in

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B.A. Programme III 
Application Course
Voluntary Organizations
Question Paper 2015

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BA Question paper Sol.du.ac.in B.A. Programme III 2015

BA Question paper Sol.du.ac.in B.A. Programme III 2015

BA Question paper Sol.du.ac.in B.A. Programme III 2015