Monday 22 February 2016

Question Paper Sociology 2015 B.A. (prog) 1st Year Sol.du.ac.in

BA previous year question papers School of Open Learning SOL Delhi University


Sol.du.ac.in School of Open Learning previous Year Question Papers Delhi University

B.A. Programme Ist Year
Sociology Paper-I
(Introduction to Sociology)
Question Paper 2015

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BA Question paper Sol.du.ac.in B.A. Programme I 2015 

BA Question paper Sol.du.ac.in B.A. Programme I 2015 

BA Question paper Sol.du.ac.in B.A. Programme I 2015 

BA Question paper Sol.du.ac.in B.A. Programme I 2015 

Saturday 20 February 2016

Ravish Kumar and Gang Exposed. Perfect reply given to them.

कुछ कमियां हम पत्रकारों की भी है। चने के झाड पर चढ़ा देते हैं। रविश कुमार को हर तरह की छूट दी गई। वो बिहार जाकर लालू की चमचा ग्री करें फिर भी महान पत्रकार , अरविंद केजरावाल के लिए समा बांधे फिर भी बडे पत्रकार। कांग्रेस पर टिप्पणी करने से बचें फिर भी ऊंचे पत्रकार। केवल उन्मादी किस्म के हिंदू संगठनों पर कहें और उन्मादी किस्म के मुस्लिम संगठनों पर न कह पाएं फिर भी निर्भीक पत्रकार।
पिछली बार प्रगति मैदान के पुस्तक मेले में गया था। अजीब नजारा। शोशेबाजी। बडे बडे विज्ञापन। हिंदी के मानो दो ही लेखक हों इस सदी के। एक तो रविश कुमार दूसरा सचिन तेंदुलकर। माफ करना दोनो ही किताबें, औसत दर्जे की। हालांकि इन किताबों का स्वागत होना चाहिए। क्योंकि एक पत्रकार ने लिखी , दूसरी महान क्रिकेटर ने। लेकिन इन किताबों में ऐसा कुछ नहीं था, जितना हाइप्रोफाइल किया गया। सब कुुछ सुनियोजित। लगा प्रेम की अनुभूति पर विश्व को झकझोरने वाली कोई किताब आई हो।
एक बडे भाई ने फेसबुक पर लिखा था कि मैने तो रविश की दस किताब एक साथ खरीद ली ताकि दूसरों को बांट सकूं। अगर रविश वाकई संजीदा हों तो उस व्यक्ति की इस टिप्पणी से झला सकते थे। पर जमाना दूसरी तरह का है । बाद में देखा तो फेसबुक में लिखने वाले भाई खुशी से बल्ले बल्ले था। उनकी टिप्पणी काम कर गई। यही जीवन है । यही राजनीति के मंच पर भी होता है। फिर कदम कदम पर होता है। एक चापलूस ने लिखा कि रवीश की किताब के बाद प्रेम के आयाम बदले हैं।
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इंशा अल्ला देश के टुकडे कर देंगे वालों के लिए मखमल में लपेट कर बातें होती है और दूसरे गरियाए जाते हैं । मानों यही सब कुछ तय करने वाले हों। यही से विचार शुरू होता हो। विरोध और समर्थन का एक गहरा गणित होता है। आसानी से समझ में नही आता। पर यह खूंखार गणित है। लोगों की भावनाओं से खेले जाने वाल गणित है। क्योंकि अभी भी लोग विश्वास कर लेते हैं कि पत्रकार जो कुछ कह रहा होगा, सही कह रहा होगा। उन्हें यह पता नहीं होता कि उनकी मासूमियत से नेता ही नहीं, पत्रकार भी खेलते हैं। गौर नहीं किया इन चंद पत्रकारो ने कि जिस दिन जेएनयू में नारे लग रहे थे , उसी दिन सिंयाचिन से कुछ ताबूत भी आ रहे थे।
सवाल यही है कि दिल्ली में बैठे दस पंद्रह पत्रकारों के गैंग ने यह माहौल बना दिया है कि वो जो कह रहे हैं वही भारतीय पत्रकारिता है। जबकि पत्रकारिता का यही सबसे बडा अभिशाप है। पत्रकारिता केवल दिल्ली के प्रंदह लोगों से तय नहीं होती। रवीश पत्रकारो के प्रवक्ता नहीं है। महज एक पत्रकार है। इसी तरह ओम थानवी, राजदीप बरखा या दीपक चौरसिया भी भारतीय पत्रकारिता के अधिकृत प्रवक्ता नहीं है।
पर माहौल ऐसा बनाया जाता है कि जैसे इन दस बारह लोगों का कहना ही भारतीय पत्रकारिता की आवाज हो। यह छद्म टूटना चाहिए। यह भ्रम टूटना चाहिए। न रविश, न थानवी , न दीपक चौरसिया न राजदीप, हमारे प्रवक्ता हैं। न ही इनकी बातें , देश के पत्रकारों की आवाज हैं। इनके अपने क्या स्वार्थ हैं और कहां ये सच हैं, उसे निजी तौर पर देखा जाना चाहिए। वह पूरे मीडिया की आवाज नहीं। अगर ऐसा होता है तो यह पाप है छल है। यह माना जाएगा कि पत्रकारिता पर इन लोगों ने अंकुश जमा दिया है। समाज का भले के लिए पत्रकारिता की आवाज गांव कस्बों से आनी चाहिए। इन दिल्ली के चंद पत्रकारों ने जिस तरह पत्रकारिता को जकड़ लिया है, उससे आजादी चाहिए। वरना ये खतरनाक है। इन्होंने अपनी आवाज को ही देश की आवाज मान लिया है।

Via~अमर उजाला के वेद उनियल 

Saturday 13 February 2016

बाहर के दुश्मन से ज्यादा घर वालों से खतरा है।

खतरे का उदघोष बजा है, रणभूमी तैयार करो,
सही वक्त है, चुन चुन करके, गद्दारों पर वार करो,
आतंकी दो चार मार कर हम खुशियों से फूल गए,
सरहद की चिंताओं में हम घर के भेदी भूल गए,
सरहद पर कांटे हैं, लेकिन घर के भीतर नागफनी,
जिनके हाथ मशाले सौंपी, वो करते है आगजनी,
ये भारत की बर्बादी के कसे कथानक लगते हैं,
सच तो है दहशतगर्दों से अधिक भयानक लगते हैं,
संविधान ने सौंप दिए हैं अश्त्र शस्त्र आज़ादी के,
शिक्षा के परिसर में नारे भारत की बर्बादी के,
अफज़ल पर तो छाती फटती देखी है बहुतेरों की,
मगर शहादत भूल गए हैं सियाचीन के शेरों की,
जिस अफज़ल ने संसद वाले हमले को अंजाम दिया,
जिस अफज़ल को न्यायालय ने आतंकी का नाम दिया,
उस अफज़ल की फांसी को बलिदान बताने निकले हैं,
और हमारे ही घर में हमको धमकाने निकले हैं,
बड़ी विदेशी साजिश के हथियार हमारी छाती पर,
भारत को घायल करते गद्दार हमारी छाती पर,
नाम कन्हैया रखने वाले, कंस हमारी छाती पर,
माल उड़ाते जयचंदों के वंश हमारी छाती पर,
लोकतंत्र का चुल्लू भर कर डूब मरो तुम पानी में,
भारत गाली सह जाता है खुद अपनी रजधानी में,
आज वतन को, खुद के पाले घड़ियालों से खतरा है,
बाहर के दुश्मन से ज्यादा घर वालो से खतरा है,
देशद्रोह के हमदर्दी हैं, तुच्छ सियासत करते है,
और वतन के गद्दारों की खुली वकालत करते है,
वोट बैंक की नदी विषैली, उसमे बहने वाले हैं,
आतंकी इशरत को अपनी बेटी कहने वाले हैं,
सावधान अब रहना होगा वामपंथ की चालों से,
बच कर रहना टोपी पहने ढोंगी मफलर वालों से,
राष्ट्रवाद के रखवालों मत सत्ता का उपभोग करो,
दिया देश ने तुम्हे पूर्ण, उस बहुमत का उपयोग करो,
हम भारत के आकाओं की ख़ामोशी से चौंके हैं,
एक शेर के रहते कैसे कुत्ते खुलकर भौंके हैं,
मन की बाते बंद करो, मत ज्ञान बाँटिये मोदी जी,
सबसे पहले गद्दारों की जीभ काटिये मोदी जी,
नहीं तुम्हारे बस में हो तो, हमें बोल दो मोदी जी,
संविधान से बंधे हमारे हाथ खोल दो मोदी जी,
अगर नही कुछ किया, समूचा भार उठाने वाले हैं,
हम भारत के बेटे भी हथियार उठाने वाले हैं,
----कवि गौरव चौहान

Valentine's Day Special Photo

Questions after JNU incident

1. Jnu students were protesting against the hanging of afzal guru ( for a moment forget all the anti india slogans)
2. Afzal guru was hanged during UPA govt.
3. Rahul baba comes out in support of jnu students knowing that they were actually protesting against his parties decision.
4. Jnu students readily accept rahul Baba's support knowing that he is the representative of the govt who hanged afzal.
5. Innocent students,commie,presstitutes everyone seems happy.
Who turns out to be the villain ?
Modi/BJP/RSS hoW ?

Valentine's Day Special

मैं थोड़ी सी पोजेसिव तो हूँ | तुम ईमेल ऑफिस में देखोगे, या फ़ोन के मेसेज दस लोगों के बीच भी बैठ कर पढ़ लोगे | लेकिन चिट्ठी तो तुम्हें अकेले में ही पढ़नी पड़ेगी | भले अब तुम बाथरूम में बंद होकर चिट्ठी पढ़ो ! लेकिन इस वक्त तुमने मेरी चिट्ठी के लिए समय निकाला है | किसी के साथ मुझे बांटना नहीं है, पूरा वक्त मेरा हो जाता है | एस्पेसिअल्ली मेरे लिए निकाला हुआ टाइम ! इसलिए मैं तुम्हें चिट्ठियां लिखती हूँ |

हमें आपके इंतज़ार में बड़ी बेचैनी होती है सरकार | मेसेज या ईमेल में पता चल जाता है कि तुमने देख लिया है | अब जवाब देगी; भेजा होगा, इन्टरनेट स्लो है; जैसी चीज़ें सोचते रहो फिर ! बार बार फ़ोन उठा के मेसेज चेक करना ! चिट्ठी में बेफिक्री होती है, जवाब देर से आये तो लगता है अभी मिली नहीं होगी चिट्ठी | जवाब फ़ौरन लौटती डाक से आएगा मिलने पर | गुस्सा कभी आया भी तो देरी करने वाले बेचारे पोस्ट ऑफिस के सरकारी नौकरों पे आता है | तुम्हारी याद आने पे बस हंसी आती है | इसलिए हमें तुम्हें चिट्ठियां लिखने में मज़ा आता है |

कागज़ पर कोई ऑटो करेक्ट नहीं होता | मुझे टोका-टाकी पसंद नहीं | कोई मेरी हर स्पेल्लिंग सुधारने नहीं बैठा होता | गलतियाँ रह भी जाएँ तो तुम तो ध्यान दोगे नहीं ! ईमेल में गलतियाँ पूरी गायब कर देने कि सुविधा होती है, भारी-भरकम शब्द ठूंसे जा सकते हैं | कभी कभी बनावटी लगता है | मैं जैसी हूँ वैसी ही जानी जाना चाहती हूँ | कुछ बनावटी नहीं, शब्दों का कोई ढोंग ओढ़ा हुआ ना हो | क्या लिखा, क्या काटा था, सब चिट्ठियों में नज़र आता है | मेरी चिट्ठियों में भी, तुम्हारे जवाब में भी | इसलिए मैं तुम्हें चिट्ठियां लिखती हूँ |

हमें दो चार अमोल पालेकर और दीप्ती नवल वाली फ़िल्में भी पसंद हैं | जिनमें बेचारा सीधा सा लड़का होता है, और आटे में नमक जितनी शरारती लड़की | तुम्हें चिट्ठियों में शरारत का मौका मिल जाता है | लिफ़ाफे में अपना सेंट डाल देती हो ! फिर डाकिया भी मुस्कुराता हुआ दे जाता है | लोगों से चिट्ठी छुपाने कि आफ़त अलग होती है ! ये खुशबु वाली चिट्ठियां आने पर कई दिन बेवजह ही मुस्कुराते गुजरते हैं | जवाब में ऐसे ख़त आना पसंद है, इसलिए हमें तुम्हें चिट्ठियां लिखने में मज़ा आता है |

बस एक कमी है, चिट्ठियों में स्माइली नहीं होती | सारे डिजाईन भी खुद ही बनाने होते हैं | तुम्हारी तो हैण्ड-राइटिंग अच्छी है मुझे खुद बनाने में मुश्किल होती है | लेकिन छोटा सा ये दिल बनाना फिर उसे रेड इंक से पूरा भरना मजेदार काम है | फिर याद आता है कि कस्टमाइज्ड डिजाईन तो ज्यादा कीमती होते हैं ना ? बरसों बाद कभी अगर हमारी चिट्ठियां बच्चे देखेंगे तो जरूर कहेंगे, दादा-दादी कितने कूल थे न ! मैं कई साल बाद का सोचकर खुश हो जाती हूँ | इसलिए मैं तुम्हें चिट्ठियां लिखती हूँ |

मेरी हैण्ड-राइटिंग कोई उतनी भी अच्छी नहीं | दरअसल जो फाउंटेन पेन तुमने दिया था ये उसकी वजह से है | इंक पेन से लिखा ज्यादा साफ़ सुथरा सा दिखता है | हमारी कमियां तुम इग्नोर कर जाती हो | रहा सवाल ये टूटे हुए से दिल का तो इसे देखकर इतना तो याद आ ही जाता है कि जिन्दगी में कुछ भी परफेक्ट नहीं होता | प्यार भी नहीं, उसे परफेक्ट बनाना पड़ता है | हमारी कल्पना कि उड़ान को तुम्हारी चिट्ठी हकीकत की जमीन पर भी उतार लाती है | इसलिए हमें तुम्हें चिट्ठियां लिखने में मज़ा आता है |

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[ आटे में नमक जितनी शरारती लड़की का दौर नहीं रहा, बेचारे सीधे से लड़के का भी नहीं | दीप्ती नवल और अमोल पालेकर भी बरसों पहले की बात हो गए हैं | हमें पता है कि चिट्ठियों का दौर भी बहुत पहले बीत चुका है | एक चीज़ जो नहीं बदली, वो ये है कि पाबंदियां पहले भी होती थी | इश्क पे पहरे आज भी हैं | पहले भी बंदिशें कोई मानता नहीं था, और हमें यकीन है आज भी नहीं ही मानी जाएँगी |

वसंत है, छुट्टी का दिन है, और एक ख़ास तारिख जिसे बाजार ने थोड़ा महंगा बना दिया है | ऐसे मौसम में जिन कुछ ख़ास लोगों के पास लाइसेंस है | मेरा मतलब या तो नयी नयी शादी हुई है, या होने वाली है ! ऐसे सभी प्रेमी युगलों को जलन भरी मुबारकबाद !

कुछ चोरी चुपके वाले बहादुर लोग भी हैं यहीं कहीं ! पाबन्दी तो मानेंगे नहीं ! उन सभी को भी शुभकामनायें !
एन्जॉय !! ]

Via~Anand Kumar

Poem after JNU incident

गज़नी का है तुम में खून भरा जो तुम अफज़ल का गुण गाते हों,
जिस देश में तुमने जन्म लिया उसको दुश्मन बतलाते हो!
भाषा की कैसी आज़ादी जो तुम भारत माँ का अपमान करो,
अभिव्यक्ति का ये कैसा रूप जो तुम देश की इज़्ज़त नीलाम करो!
अफज़ल को अगर शहीद कहते हो तो हनुमनथप्पा क्या कहलायेगा,
कोई इनके रहनुमाओं का मज़हब मुझको बतलायेगा!
अपनी माँ  से जंग करके ये कैसी सत्ता पाओगे,
जिस देश के तुम गुण गाते हो, वहाँ बस काफिर कहलाओगे!
हम तो अफज़ल मारेंगे तुम अफज़ल फिर से पैदा कर लेना,
तुम जैसे नपुंसको पे भारी पड़ेगी ये भारत सेना!
तुम ललकारो और हम न आये ऐसे बुरे हालात नहीं
भारत को बर्बाद करो इतनी भी तुम्हारी औकात नहीं!
कलम पकड़ने वाले हाथों को बंदूक उठाना ना पड़ जाए,
अफज़ल के लिए लड़ने वाले कहीं हमारे हाथो न मर जाये!
भगत सिंह और आज़ाद की इस देश में कमी नहीं,
बस इक इंक़लाब होना चाहिए,
इस देश को बर्बाद करने वाली हर आवाज दबनी चाहिए!
ये देश तुम्हारा है ये देश हमारा है, हम सब इसका सम्मान करें,
जिस मिट्टी पे हैं जनम लिया उसपे हम अभिमान करें!
जय हिंद ।

Tuesday 9 February 2016

Question Paper Hindi Language (A) 2015 B.A. (prog) IIIrd Year Sol.du.ac.in

BA previous year question papers School of Open Learning SOL Delhi University


Sol.du.ac.in School of Open Learning previous Year Question Papers Delhi University

B.A. Programme IIIrd Year
Hindi Language A Paper-II

Question Paper 2015

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Net neutrality के नाम पर फेसबुक के free basic internet का अंधा विरोध

(ये एक महत्वपूर्ण विषय है, इसलिए निवेदन है एक बार जरूर पढ़े फिर अपनी राय दें )

बड़े दुख की बात है कि इ़ंटरनेट की आजादी और net neutrality के नाम पर फेसबुक के free basic internet का अंधा विरोध किया जा रहा है ...
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तर्क यह दिया जा रहा है कि फेसबुक और रिलायंस जो free basic ला रहे है, उसमें फेसबुक और कुछ 4-5 साइटो पर सर्फिंग ही फ्री होगी, बाक़ी साइट पर या तो ज्यादा चार्ज लगेगा या वो free basic साइटस के मुकाबले धीमी चलेगी...
हा तो ठीक है, इसमें दिक्कत क्या है?

जिनके पास Vodafone, Airtel वगैरह का नेट हैं तो उन्हें परेशान होने की क्या जरुरत है...,
ये free basics स्कीम उनके लिए हैं जो इंटरनेट से दूर है या हर महीने डेटा पैक में पैसे नहीं खर्च कर सकते...
फेसबुक और reliance के free basic के जरिए वो लोग फेसबुक समेत कुछ साइटो को मुफ्त acess करके इंटरनेट का अनुभव ले सकते है, इसमें दिक्कत क्या है?
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सरकार भले ही कहती हो कि देश में 25-30 करोड़ इंटरनेट यूजर हैं, (इनमें नियमित इंटरनेट युजर बहुत कम है और एक बार नेट यूज करने वालो को भी इसमें जोड़ दिया गया है)
और देश के इन 25-30 करोड़ इंटरनेट यूजरो मे 80% इंटरनेट युजर देश के चुंनिदा दस बारह शहरों में ही है, जबकि गांवों की जो 90 करोड़ की आबादी है, वहाँ मात्र 2-3 करोड़ लोग ही active इंटरनेट यूजर हैं.....
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सच तो ये है कि देश में 70-80 करोड़ लोगों का इंटरनेट जैसी किसी चीज़ से पाला नहीं पडा हैं, इसलिए यदि रिलायंस और फेसबुक उन्हें कुछ साइटे मुफ्त में दे रही हैं, तो ये उनके लिए इंटरनेट से रूबरू होने का अच्छा मौका होगा......जिसे ज्यादा साइटे चाहिए वो रिलायंस का नेट न ले और अपनी पसंद की कंपनी का नेट ले.....लेकिन जो 70 करोड़ लोग नेट से दूर है, अगर उनको फेसबुक समेत मुफ्त साइटो के जरिए इंटरनेट का अनुभव मिल रहा है तो ये स्वागत योग्य है.....
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याद कीजिए सन् 2003 में शुरू में रिलायंस ने भी 500 रु मे हर हाथ मोबाइल की स्कीम लाकर देश में एक मोबाइल क्रांति ला दी थीं, जिससे निचले तबक़े के आदमी के हाथ में भी मोबाइल आ गया था.....

फिर बाद में मार्केट में ज्यादा विकल्प होने पर लोगों के लिए मोबाइल लेना कहीं ज्यादा आसान और सुविधाजनक जनक हो गया... 

ऐसे ही यदि फेसबुक अभी रिलायंस के साथ कुछ साइटे फ्री दे रहा है, तो इससे करोड़ों लोगों तक फेसबुक पहुंचाने में मदद मिलेगी फिर बाद में जैसे जैसे इंटरनेट की पहुंच गावो में गहरी होती जाएगी, मार्केट में और ज्यादा सस्ते फोन और नेट आते जाएंगे और लोग अपनी पसंद के हिसाब से नेट लेते जाएंगे...
इसलिए अभी तो उन्हें initial लेवल पर फेसबुक के free basic के जरिए नियमित नेट का अनुभव लेने दो....
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अब सरकार भले ही ढाई लाख गावो में केबल बिछाने का दावा करे, लेकिन सरकारी व्यवस्था और जमीनी हकीकत को देखते हुए ये दूर की कौड़ी लगती हैं... 
यदि फेसबुक या गूगल जैसी कंपनियां अपने टावर लगाकर इंटरनेट के काम को बहुत तेजी और प्रोफशनल तरीके से पूरा कर पाएगी..
लोग कहते है कि फ्री इंटरनेट जैसा कुछ नहीं है जरूर इसमें फेसबुक का फायदा होगा..,अरे फायदा होता हैं तो होने दो, उन्होंने कोई लंगर तो नहीं चलाया हैं...,अच्छा है फायदे और business को देखते हुए फेसबुक जैसी कंपनी बहुत तेज और प्रोफेशनल तरीके से फेसबुक इंटरनेट को गांवों में पहुंचाएगी..
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मै तो चाहता हूँ कि फेसबुक ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचे,,,,,

क्योंकि ये फेसबुक ही तो हैं जो हमारे जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन लाया है और हम जैसे सामान्य व्यक्तियों को activist बना दिया है..... फेसबुक से लोगों में बहुत जागरूकता बढ़ी है..

लेकिन दुर्भाग्य से फेसबुक की पहुंच अभी भी मात्र 20% लोगों तक ही है....
देश की 80% जनता को भी फेसबुक इंटरनेट से रूबरू करवाना होगा, तभी देश, दुनिया, सरकार, धर्म, इतिहास, अर्थव्यवस्था और मीडिया के बारे में उनकी अच्छी समझ विकसित हो जाएगी और हर आदमी अपने में एक जागरूक नागरिक और activist बन जाएगा.....
इससे सिस्टम और अर्थव्यवस्था में भी तेजी से सुधार होगा.,
इसलिए मैं फेसबुक के फ्री बेसिक का समर्थन करता हूँ।

Via~Sumit Sharma








Sunday 7 February 2016

Question Paper Education in Contemporary India 2015 B.A. (prog) IIIrd Year Sol.du.ac.in

BA previous year question papers School of Open Learning SOL Delhi University


Sol.du.ac.in School of Open Learning previous Year Question Papers Delhi University

B.A. Programme IIIrd Year
Contemporary India
Education in the contemporary India trends, issues and challenges
Question Paper 2015

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BA Question paper Sol.du.ac.in B.A. Programme I 2015 

BA Question paper Sol.du.ac.in B.A. Programme I 2015 

BA Question paper Sol.du.ac.in B.A. Programme I 2015