मैं थोड़ी सी पोजेसिव तो हूँ | तुम ईमेल ऑफिस में देखोगे, या फ़ोन के मेसेज दस लोगों के बीच भी बैठ कर पढ़ लोगे | लेकिन चिट्ठी तो तुम्हें अकेले में ही पढ़नी पड़ेगी | भले अब तुम बाथरूम में बंद होकर चिट्ठी पढ़ो ! लेकिन इस वक्त तुमने मेरी चिट्ठी के लिए समय निकाला है | किसी के साथ मुझे बांटना नहीं है, पूरा वक्त मेरा हो जाता है | एस्पेसिअल्ली मेरे लिए निकाला हुआ टाइम ! इसलिए मैं तुम्हें चिट्ठियां लिखती हूँ |
हमें आपके इंतज़ार में बड़ी बेचैनी होती है सरकार | मेसेज या ईमेल में पता चल जाता है कि तुमने देख लिया है | अब जवाब देगी; भेजा होगा, इन्टरनेट स्लो है; जैसी चीज़ें सोचते रहो फिर ! बार बार फ़ोन उठा के मेसेज चेक करना ! चिट्ठी में बेफिक्री होती है, जवाब देर से आये तो लगता है अभी मिली नहीं होगी चिट्ठी | जवाब फ़ौरन लौटती डाक से आएगा मिलने पर | गुस्सा कभी आया भी तो देरी करने वाले बेचारे पोस्ट ऑफिस के सरकारी नौकरों पे आता है | तुम्हारी याद आने पे बस हंसी आती है | इसलिए हमें तुम्हें चिट्ठियां लिखने में मज़ा आता है |
कागज़ पर कोई ऑटो करेक्ट नहीं होता | मुझे टोका-टाकी पसंद नहीं | कोई मेरी हर स्पेल्लिंग सुधारने नहीं बैठा होता | गलतियाँ रह भी जाएँ तो तुम तो ध्यान दोगे नहीं ! ईमेल में गलतियाँ पूरी गायब कर देने कि सुविधा होती है, भारी-भरकम शब्द ठूंसे जा सकते हैं | कभी कभी बनावटी लगता है | मैं जैसी हूँ वैसी ही जानी जाना चाहती हूँ | कुछ बनावटी नहीं, शब्दों का कोई ढोंग ओढ़ा हुआ ना हो | क्या लिखा, क्या काटा था, सब चिट्ठियों में नज़र आता है | मेरी चिट्ठियों में भी, तुम्हारे जवाब में भी | इसलिए मैं तुम्हें चिट्ठियां लिखती हूँ |
हमें दो चार अमोल पालेकर और दीप्ती नवल वाली फ़िल्में भी पसंद हैं | जिनमें बेचारा सीधा सा लड़का होता है, और आटे में नमक जितनी शरारती लड़की | तुम्हें चिट्ठियों में शरारत का मौका मिल जाता है | लिफ़ाफे में अपना सेंट डाल देती हो ! फिर डाकिया भी मुस्कुराता हुआ दे जाता है | लोगों से चिट्ठी छुपाने कि आफ़त अलग होती है ! ये खुशबु वाली चिट्ठियां आने पर कई दिन बेवजह ही मुस्कुराते गुजरते हैं | जवाब में ऐसे ख़त आना पसंद है, इसलिए हमें तुम्हें चिट्ठियां लिखने में मज़ा आता है |
बस एक कमी है, चिट्ठियों में स्माइली नहीं होती | सारे डिजाईन भी खुद ही बनाने होते हैं | तुम्हारी तो हैण्ड-राइटिंग अच्छी है मुझे खुद बनाने में मुश्किल होती है | लेकिन छोटा सा ये दिल बनाना फिर उसे रेड इंक से पूरा भरना मजेदार काम है | फिर याद आता है कि कस्टमाइज्ड डिजाईन तो ज्यादा कीमती होते हैं ना ? बरसों बाद कभी अगर हमारी चिट्ठियां बच्चे देखेंगे तो जरूर कहेंगे, दादा-दादी कितने कूल थे न ! मैं कई साल बाद का सोचकर खुश हो जाती हूँ | इसलिए मैं तुम्हें चिट्ठियां लिखती हूँ |
मेरी हैण्ड-राइटिंग कोई उतनी भी अच्छी नहीं | दरअसल जो फाउंटेन पेन तुमने दिया था ये उसकी वजह से है | इंक पेन से लिखा ज्यादा साफ़ सुथरा सा दिखता है | हमारी कमियां तुम इग्नोर कर जाती हो | रहा सवाल ये टूटे हुए से दिल का तो इसे देखकर इतना तो याद आ ही जाता है कि जिन्दगी में कुछ भी परफेक्ट नहीं होता | प्यार भी नहीं, उसे परफेक्ट बनाना पड़ता है | हमारी कल्पना कि उड़ान को तुम्हारी चिट्ठी हकीकत की जमीन पर भी उतार लाती है | इसलिए हमें तुम्हें चिट्ठियां लिखने में मज़ा आता है |
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[ आटे में नमक जितनी शरारती लड़की का दौर नहीं रहा, बेचारे सीधे से लड़के का भी नहीं | दीप्ती नवल और अमोल पालेकर भी बरसों पहले की बात हो गए हैं | हमें पता है कि चिट्ठियों का दौर भी बहुत पहले बीत चुका है | एक चीज़ जो नहीं बदली, वो ये है कि पाबंदियां पहले भी होती थी | इश्क पे पहरे आज भी हैं | पहले भी बंदिशें कोई मानता नहीं था, और हमें यकीन है आज भी नहीं ही मानी जाएँगी |
वसंत है, छुट्टी का दिन है, और एक ख़ास तारिख जिसे बाजार ने थोड़ा महंगा बना दिया है | ऐसे मौसम में जिन कुछ ख़ास लोगों के पास लाइसेंस है | मेरा मतलब या तो नयी नयी शादी हुई है, या होने वाली है ! ऐसे सभी प्रेमी युगलों को जलन भरी मुबारकबाद !
कुछ चोरी चुपके वाले बहादुर लोग भी हैं यहीं कहीं ! पाबन्दी तो मानेंगे नहीं ! उन सभी को भी शुभकामनायें !
एन्जॉय !! ]
Via~Anand Kumar
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